उत्तराखंड के पारंपरिक विरासत घराट (पनचक्की) की आटे की स्वाद के लोग आज भी हैं दीवाने देखिए वीडियो कैसे पनचक्की से होती है गेहूं की पिसाई

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हल्द्वानी :घराट यानी पंचक्की उत्तराखंड की पारंपरिक पहचान हैं, पर्वतीय अंचलों में ब्रिटिशकाल से घराटों का संचालन होता आया है लेकिन अब घराट आधुनिकता की चकाचौंध में खोते जा रहे है जिनकी टिक-टिक की आवाज कभी कानों में गूंजती थी, अब वो कम ही सुनाई देती है आधुनिकता के इस दौर में जहां हर जगह बिजली की चक्कियों ने जगह ले ली है और समय की बचत के चलते इन पर लोगों की निर्भरता बढ़ गई है ऐसे में पहचान खोते इन पारंपरिक घराटों को अब विरासत के रूप में संजोए रखने की जरूरत हैहल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले बसंत कुमार आज भी पहाड़ के ब्रिटिशकालीन इस धरोहर को संजोने का काम कर रहे है पहाड़ों के लोगों के लिए गेहूं पिसाने के लिए मुख्य साधन घराट (पनचक्की) हुआ करता था लेकिन बदलते दौर में अब पनचक्की (घराट) का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. लेकिन बसंत कुमार द्वारा संचालित की जा रही पनचक्की 1882 की बताई जा रही है जिनको वह संरक्षित कर आने वाले पीढ़ियों को जागरूक कर रहे हैं। यही नहीं पंचक्की पर लोग दूर-दूर से गेहूं पिसाने आ रहे हैं क्योंकि पंचक्की के आटे की स्वाद ही अलग है।

बाइट -बसंत कुमार पंचक्की संचालक

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