उत्तराखंड के इस शहर के जमीन के नीचे दबा है पुराना शहर?तलाश में जुटा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया
उत्तराखंड की धरती अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। यहां प्रागैतिहासिक काल के सबूत मिलते रहे हैं,कुमाऊं सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में भी एक पौराणिक शहर होने की संभावना जताई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी में खुदाई की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कहना है कि यहां गेवाड़ घाटी में स्थित रामगंगा नदी के नीचे पौराणिक शहर हो सकता है। लिहाजा अब यहां सर्वे और खुदाई की कवायद होने लगी है।सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा जिले के गेवाड़ घाटी में स्थित रामगंगा नदी के किनारे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जनवरी महीने में अपनी एक टीम भेज रहा है. यह टीम नदी किनारे स्थित पहाड़ों और मैदान की जांच करेगी. यह देखेगी कि आखिरकार अल्मोड़ा जिले में जो कई सौ साल पुराने मंदिर हैं, वो यहां पर कैसे आए और किसने इसकी स्थापना की.
एएसआई को उम्मीद है कि रामगंगा नदी किनारे नौवीं शताब्दी से लेकर 15 शताब्दी तक कोई सभ्यता रही हो. ऐसे में इसकी जानकारी जुटाई जाए.
एएसआई को हाल ही में कई छोटे मंदिर मिले हैं, जिनकी ऊंचाई एक से दो फीट है. इससे पहले भी 1990 के दशक में उस इलाके में एक सर्वेक्षण किया गया था. गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने 9वीं शताब्दी में बने गणेश के एक मंदिर और नाथ संप्रदाय के सात अन्य मंदिरों का पता लगाया था. जिससे पता चलता है कि उस इलाके में मानव निवास मौजूद था. 1993 में हुए इस सर्वे में हिस्सा लेने वाली टीम को खुदाई के दौरान माध्यम आकार की कब्रें और बड़े जार मिले, जिनमें मृतकों के अवशेष रखे गए थे.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कहना है कि यहां गेवाड़ घाटी में स्थित रामगंगा नदी के नीचे पौराणिक शहर हो सकता है। लिहाजा अब यहां सर्वे और खुदाई की कवायद होने लगी है, ताकि इतिहास के छिपे हुए पन्नों को सामने लाया जा सके। यहां 1000 साल पहले लुप्त हो चुकी सभ्यता के निशान तलाशे जा रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जनवरी महीने में अपनी एक टीम गेवाड़ घाटी में भेज रहा है। यह टीम नदी किनारे स्थित पहाड़ों और मैदान की जांच करेगी। यह देखेगी कि आखिरकार अल्मोड़ा जिले में जो कई सौ साल पुराने मंदिर हैं, वो यहां पर कैसे आए और किसने इनकी स्थापना की.
सर्वे टीम को चित्रित मिट्टी के बर्तन और कटोरे भी मिले. ये मेरठ के हस्तिनापुर और बरेली के अहिच्छत्र में गंगा के दोआब में पाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों के समान हैं, जो पहली-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं. हालांकि उस समय वहां कोई मानव बस्ती नहीं मिली. मगर सर्वे के नतीजों से संकेत मिलता है कि एक खोया हुआ शहर खुद को खोजे जाने का इंतजार कर रहा है. यह एएसआई के लिए एक बड़ी सफलता हो सकती है. विशेष रूप से हाल ही में उसी इलाके में एक 1.2 मीटर ऊंचा और लगभग 2 फीट व्यास का विशाल शिवलिंग मिला है. पुरातत्वविदों के अनुमान के मुताबिक दुर्लभ शिवलिंग 9वीं शताब्दी का है और यह कत्यूरी शासकों के मंदिरों में से एक का था, जो बाद में गायब हो गया.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देहरादून सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद मनोज सक्सेना कहते हैं कि अगर हमें कोई ठोस सबूत मिलता है तो मामले में आगे बात करेंगे और तब खुदाई की परमिशन के लिए बात करेंगे. उनका कहना है कि जानकारों और उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर लगता है कि नदी किनारे कभी कोई सभ्यता रही होगी. इसीलिए कई पहलुओं को देखने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं.
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