Uttarakhan News: फर्जीवाड़ा का खुलासा..रक्षा मंत्रालय की 55 बीघा जमीन के भी बना डाले फर्जी रजिस्ट्री

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उत्तराखंड में जमीनों के फर्जीवाड़ा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं देहरादून के रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में अब एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जालसाजों ने रक्षा मंत्रालय की 55 बीघा जमीन के भी फर्जी दस्तावेज बनाकर इस पर कब्जे का प्रयास किया। लड़ाई न्यायालय तक लड़ने चले गए। इसी बीच एक जालसाज को एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया।

बिजनौर निवासी इस जालसाज ने टर्नर रोड स्थित एक जमीन को भी 11 लोगों को बेचकर तीन करोड़ रुपये लिए थे। इस मामले में अब तक एसआईटी 16 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी।पुलिस ने मोहम्मद हुमायूं परवेज नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर देहरादून के माजरा और क्लेमेन्टाउन में रक्षा मंत्रालय की जमीन के फर्जी बैनामे बनाकर करीब 11 लोगों को तीन करोड़ रुपए में बेची थी.

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देहरादून एसएसपी अजय सिंह ने इस मामले का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि सहायक महानिरीक्षक निबंधन संदीप श्रीवास्तव ने टर्नर रोड से सुभाष नगर चौक के बीच क्लेमनटाउन में लगभग 2500 गज भूमि और माजरा में 55 बीघा जमीन के फर्जी बैनामे के संबंध में कोतवाली नगर देहरादून में मुकदमा दर्ज किया गया था.

इनकी जांच में बिजनौर के नगीना निवासी हुमायूं परवेज का नाम सामने आया। आरोपी को एसआईटी ने बृहस्पतिवार को गिरफ्तार कर लिया। आरोपी ने पूछताछ में बताया कि उसने टर्नर रोड स्थित जमीन के सहारनपुर में अपने साथियों के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज बनाए थे। इस जमीन का 1944 में अल्लादिया से अब्दुल करीम और अपने पिता जलीलू रहमान के नाम बैनामा बनाकर मालिक दर्शाया था। इसके उसने वर्ष 2016 में सहारनपुर के रजिस्ट्रार रिकॉर्ड रूम में जिल्द में चढ़वा दिया।

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जलीलू रहमान की मौत के बाद इस जमीन को वसीयत के आधार पर 2019 से 2020 के बीच हुमायूं परवेज ने 11 लोगों को बेच डाला। इससे कुल तीन करोड़ रुपये सहारनपुर के जेएंडके बैंक के खाते में जमा कराए। इसके साथ ही उसने अपने साथियों के माध्यम से माजरा स्थित 55 बीघा जमीन के फर्जी दस्तावेज बनवाए। इस जमीन के असली मालिक लाला सरनीमल व मनीराम से 1958 का फर्जी बैनामा बनाया गया। इसे भी उसने अपने पिता जलीलू रहमान और एक अन्य व्यक्ति अर्जुन प्रसाद के नाम दर्शाया।सीमांकन के लिए प्रार्थना पत्र एसडीएम कार्यालय और हाई कोर्ट को प्रेषित कर आदेश करवाये गए, लेकिन ग्राम माजरा स्थित लगभग 55 बीघा जमीन साल 1958 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने रक्षा मंत्रालय के नाम कर थी, जो आज भी रक्षा मंत्रालय के कब्जे में है, जिस कारण सीमांकन की कार्रवाई को खारिज किया गया था.

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