नैनीताल: वनाग्नि से बचाव में उतरी सहायता समूह की महिलाएं,पिरूल का पत्ता बना रोजगार का साधन
नैनीताल: नैनीताल जनपद के कई पहाड़ी क्षेत्रों में इन दिनों आग लगी हुई है आग को बुझाने के लिए वन विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। जंगलों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण पहाड़ के चीड़ के पेड़ से गिरने वाला पिरूल का पत्ता है जो जंगल में लगने वाली आग को और भड़काने का काम करता है ऐसे में कई संस्थाएं ऐसी है जो पहाड़ की के पत्तों को खरीदने का काम कर रही है, ऐसे में पहाड़ की स्व सहायता समूह की महिलाएं वनाग्नि से बचाव के लिए पिरूल के पत्ते को इकट्ठा कर आग से बचाने का काम के साथ-साथ पत्ते को भेज अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही है जहां पत्ते को कई संस्थाएं खरीद कर ले जा रही हैं।
उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊॅचाई पर बहुतायत से पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. 3.43 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में फैले चीड के वनों से ग्रीष्मकालीन सीजन में पतझड़ के समय लगभग 20.58 लाख टन पिरूल इनसे गिरता है. 20 से 25 सेमी लम्बे नुकीले पत्ते तीन पत्तियों के गुच्छ में सूखे पत्ते अत्यन्त ज्वलनशील होते हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी एक कारण है, जिससे प्रतिवर्ष कई जंगल वनाग्नि के भेंट चढ़ते।
पिरूल पत्ता ईंधन के लिए है बेहतर
योजना सफल रही तो ग्रामीणों महिलाओं को रोजगार मिलने के साथ ही ईधन का एक बेहतर विकल्प भी साबित हो सकती है. सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि सड़कों के आस-पास के क्षेत्रों से यदि पिरूल संग्रह होगा तो वनाग्नि से बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा. वनाग्नि से जो वनस्पतियां, पेड़ तथा दुर्लभ वन्य जीवों को जो नुकसान होता है उससे सुरक्षा होगी तथा पिरूल की मोटी तह जम जाने से उसके नीचे वनस्पतियां नहीं उग पाती वे भी उगेंगी. ब्रिकेट के निर्माण में स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी मुहैय्या होंगे.यानि कुल मिलाकर पिरूल का उपयोग होने पर फायदे ही फायदे. निश्चित रूप से वनाग्नि को रोकने की दिशा में यह कदम काफी उपयोगी होगा।
श्यामखेत (भवाली) तथा ग्राम चोपड़ा (ज्योलीकोट) में पिरूल संग्रह का कार्य किया जा रहा है, जिस के तहत 3 रूपये प्रति किग्रा की दर से ग्रामीणों से पिरूल क्रय करने की योजना है, जिसके लिए पिरूल इकट्ठा करने हेतु आवश्यक उपकरण आदि भी ग्रामीण महिलाओं/ बेरोजगारों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं. उपलब्ध पिरूल से ब्रिकेट बनाने की योजना है, जिसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जायेगा।
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