(बड़ी खबर )उत्तराखंड के इस ऐतिहासिक शहर पर संकट, 600 घरों में पड़ी दरारे, लोगो में हड़कम्प, SDRF तैनात CM पहुंचेंगे मौके पर

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उत्तराखंड के धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगरी जोशीमठ भू धंसाव के कारण अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। इसके चलते कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू नहीं हुई तो इस पौराणिक नगरी का अस्तित्व सिमट कर रह जाएगा।

दरअसल बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब के मुख्य पडाव जोशीमठ का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। अपनी विशिष्टता के चलते जोशीमठ पर भू धंसाव की मार पड़ने से यह ऐतिहासिक नगरी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। जोशीमठ के सिंहधार, सुनील मनोहरबाग, गांधीनगर, नृसिंह मंदिर, जीरोबैंड, रविग्राम तथा टीसीपी बाजार इलाके में ज्यादातर मकानों में भू धंसाव के कारण दरारें पड़ने से कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है।

मकानों के साथ ही घरों के आंगन भी अंदर ही अंदर धंसने शुरू हो गए हैं। जोशीमठ की सड़कें पहले ही धंसाव की जद में आने के कारण देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग हिचकोले खाकर आवाजाही करने को विवश हैं।

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वैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार अलकनंदा से जोशीमठ नगर की तलहटी पर कटाव की वजह से जोशीमठ का अस्तित्व में खतरे में पड़ता जा रहा है। नालियों का निर्माण न होने के कारण भी भू धंसाव विकराल रूप धारण करता जा रहा है।


समस्या को।देखते हुए प्रशासन के आग्रह पर आईआईटी रूड़की तथा वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस धार्मिक नगरी का बारीकी से जायजा लिया। वैज्ञानिकों की टीम ने पूरे इलाके का अध्ययन कर लिया है। इस बारे में सिफारिश की गई है कि जल्द से जल्द इस धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी को बचाने के लिए प्रभावी कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए।

चमोली जनपद पूरी तरह भूकंपीय दृष्टि से जोन 5 में स्थित ऐतिहासिक नगरी पर भूकंप की मार का खतरा हर समय मंडरा रहा है। करीब 17 हजार से अधिक आवादी वाले सीमांत नगर जोशीमठ में 4000 करीब मकानों की बसागत भी है। इसके चलते इंसानी तथा मकानों का बोझ भी इस संवेदनशील नगरी पर बढ़ता जा रहा है।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि गुजरे दशकों में जोशीमठ के धंसने की प्रक्रिया में कुछ ठहराव भी आता रहा किंतु पिछले साल फरवरी और अक्टूवर की तबाही ने धंसाव की प्रक्रिया को गति दी है। उनके अनुसार 70 के दशक में भूस्खलन और भ धंसाव के चलते जोशीमठ पर खतरे के भू बादल मंडराने लगे थे। इसके चलते 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की
अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया।

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मिश्रा कमेटी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्राकृतिक जंगलों को बेरहमी से तहसनहस कर दिया गया। पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ के होने के चलते ही खतरे ने आमद दी है। करीब 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर जोशीमठ स्थित है। इसके बावजूद पेड़ अब 8 हजार फीट से पीछे हो रहे हैं। पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्खलन हो रहा है।

भवनों के निर्माण तथा सड़कों के बनने से ब्लास्ट से भी इस नगरी के अस्तित्व पर खतरे की घंटी पहले ही बज चुकी है। अतुल सती के अनुसार रिपोर्ट पर अमल नहीं हुआ। इसके बजाय विस्फोटों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर बड़े निर्माण कार्य होते रहे। यही वजह है कि जोशीमठ के विस्तार से के साथ ही भू धंसाव की गति ने जोर पकड़ा है। भू वैज्ञानिकों और विशेषज्ञो की रिपोर्ट में नियंत्रित विकास की बात की गई है।

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बताया जा रहा है कि जोशीमठ का ही रविग्राम हर साल 85 एमएल की रफ्तार से धंस रहा है। जोशीमठ के पालिकाध्यक्ष शैलेंद्र पंवार का कहना है कि जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू की जानी चाहिए। जोशीमठ पर बढ़ते मानवीय दबाव के चलते यदि अभी भी सवेदनशीलता नही दिखाई तो मामला गम्भीर हो सकता है।

जोशीमठ की स्थितियों का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कल यानी शनिवार को सुबह 11:55 बजे जोशीमठ के लिए रवाना होंगे। तय कार्यक्रम के अनुसार देहरादून के पुलिस लाइन से हेलीकॉप्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री जोशीमठ के लिए रवाना होंगे। दोपहर 12:50 बजे मुख्यमंत्री जोशीमठ पहुंचेंगे। जहां सीएम जोशीमठ की स्थितियों का धरातलीय निरीक्षण करेंगे। इसके बाद दोपहर 2:30 बजे के करीब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जोशीमठ से देहरादून के लिए रवाना होंगे।


वही जोशीमठ में पुलिस ने एसडीआरएफ को तैनात किया है जिससे कि किसी भी तरह की आपदा की स्थिति मैं एसडीआरएफ के जवान लोगों की मदद करेंगे

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