हल्द्वानी:रेशम विभाग रेशम कोये से हस्तनिर्मित उत्पादन बाजारो में उतारा,महिला समूह बना रही है आत्मनिर्भर-देखे-VIDEO

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हल्द्वानी:उत्तराखंड के रेशम इतिहास में पहली बार यहाँ की महिलाओं द्वारा रेशम कोये से हस्तनिर्मित उत्पाद बनाये जा रहे हैं। जो मंत्रमुग्ध कर देने वाले सौदर्य से परिपूर्ण हैं। इनमें से कई उत्पाद तो ऐसे हैं जो देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रतीक के रूप में इस राज्य का प्रतिनिधित्त्व करते नजर आते हैं, जैसे हूबहू, माँ नंदा सुनंदा का फोटो फ्रेम, केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति फोटो फ्रेम, पहाड़ी महिला का जीवंत फोटो फ्रेम, उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी हिमालयी मोनाल का उडी फोटो फ्रेम। इनके अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण का फोटो फ्रेम, राम-सीता व लछमण और हनुमान जी के विभिन्न फोटो फ्रेम, भगवान गणेश जी का फोटो फ्रेम, रेशम कोये से तैयार विभिन्न फूलों से तैयार स्मृति चिन्ह व गुलदस्ते और बुके, मालायें, तोरन, बैज, ब्रूच, कान के कुंडल/बालियों, गले का हार, पहाडी नथ, मांगटीका, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्लोगन को जीवंत करता मोमेंटो, और भी बहुत कुछ। यह उत्तराखण्ड के रेशम विकास के क्षेत्र में एक ऐसा नवाचारी कार्य है जो देश-दुनिया में उत्तराखण्ड की एक अलग पहचान बनायेगा और साथ ही यहाँ की महिलाओं को स्वरोजगार का एक ऐसा अवसर उपलब्ध करायेगा जिसमें विकास की असीम सम्भावनायें हैं, जिसका प्रभाव पहाड़ों से हो रहे पलायन पर भी निश्चित रुप से सकारात्मक होगा।

वस्त्रों की रानी के नाम से प्रचलित रेशम, रेशमकीट के लार्वा द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से तैयार होता है। रेशम के उत्पादन में भारत विश्व में दुसरे स्थान पर है। रेशम चार प्रकार का होता है. शहतूती रेशम, टसर रेशम, मूंगा रेशम, अरंडी रेशम। भारत में शहतूती रेशम का उत्पादन विशेष तौर पर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर व पश्चिम बंगाल तथा गैर-शहतूती रेशम का उत्पादन विशेष तौर पर झारखंड, छत्तीसगड, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उड़ीसा व उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है। भारत मे उत्तराखण्ड ही एक ऐसा राज्य है, जिसमें सभी प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है। उत्तराखण्ड के सभी जिलों में रेशम उत्पादन का कार्य हो रहा है. अभी तक रेशम से राज्य में धागाकरण कर वस्त्र उत्पादन का कार्य तो किया जा रहा था किंतु यह पहली बार ही है कि अब रेशम कोये से हस्तशिल्प के माध्यम से मनमोहक, सजावटी व उपयोगी सामान तैयार किये जाने लगे हैं। उपनिदेशक (रेशम) कुमाऊँ मण्डल, हेम चंद्र का कहना है कि रेशम विभाग में उनकी पहली पोस्टिंग सहायक निदेशक, रेशम के तौर पर जनपद चमोली में हुई। अपनी नौकरी के शुरुवाती दौर में ही उनके भीतर यह मंथन होने लगा कि रेशम के क्षेत्र में ऐसा क्या नवाचारी कार्य किया जाये जो रेशम से जुड़े किसानों व महिलाओं को स्तरीय रोजगार प्रदान करते हुए उनकी आय को स्थायित्व भी दे व साथ ही राज्य उत्तराखण्ड को भी रेशम के द्वारा वैश्विक फलक पर लेकर आये, ऐसा नवाचारी कार्य जिसको स्थापित करने में बहुत कम पूंजी की आवश्यकता हो।

क्योंकि रीलिंग ईकाई व वस्त्र निर्माण ईकाई स्थापित करना एक आम किसान के बस की बात नहीं है। हेम चंद्र ने एक ऐसे कार्य के लिये सोचा जिसका सीधा व महत्तम लाभ किसान को प्राप्त हो। तभी एक दिन अचानक नाश्ता करते समय उनके मन में इस सोच को साक्षात कर सकने की ताकत रखने वाला विचार आया और उनकी आंखे चमक उठी। वह विचार था कि यदि हम यहाँ उत्पादित होने वाले कच्चे माल यानि रेशम कोये में हाथ की कलाकारी को भी शामिल कर दें तो हम ऐसे मूल्य संवर्धित व सुंदर उत्पाद बना सकते हैं जो रेशम जैसी स्तरीय चीज से बने सुंदर उत्पाद होंगे जिन्हें अमूमन हर व्यक्ति खरीदना चाहेगा और अच्छे मार्केटिंग टूल्स का उप्योग कर उन्हें देश-दुनिया की जनता तक पहुंचा कर अच्छी आमदनी भी अर्जित की जा सकेगी। फिर क्या था हेम चंद्र लग गये अपनी इस सोच को सार्थक करने के प्रयासों में और एक ऐसे रिसोर्स पर्सन की तलाश में जो महिलाओं/किसानों को यह हस्तकला सीखा सके। इसी दौरान उनकी मुलाकात सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय पंतनगर, कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों डाक्टर शेफाली मेसी व डाक्टर दिव्या से हुई और हेम ने अपनी यह सोच व नजरिया उनसे साझा किया। तदुपरांत उनकी मदद से इसी वर्ष 2024 में सर्वप्रथम ऊधमसिंह नगर जनपद की महिला किसानों को रेशम कोया शिल्प कला मे प्रशिक्षित किया जा सका और रेशम विभाग के सहयोग व प्रोत्साहन से उसके कुछ समय बाद ही रक्षाबंधन के अवसर पर इन प्रशिक्षित महिला किसानों में से इच्छुक 2 महिलाओं द्वारा
रेशम कोये से राखियों बनाकर स्थानीय बाजार व हल्द्वानी के बाजार में भी विक्रय किया गया, जिससे मात्र 10 दिन में ही लगभग ₹ 15000/- की आय इन महिलाओं द्वारा अर्जित की जा सकी। हेम चंद्र यही पर नहीं रुके उन्होंने ऊधमसिंह नगर की प्रशिक्षित महिलाओं में से एक अच्छी प्रशिक्षित कृषक कु. काजल, ग्राम बांसखेडा, बाजपुर का चयन कर व मास्टर ट्रेनर के तौर पर आमंत्रित कर इसी सितम्बर माह में जनपद नैनीताल की महिलाओं को इस कार्य में प्रशिक्षित करवाया।

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जनपद नैनीताल की इन प्रशिक्षित महिलाओं को इस कार्य के जरिये आय अर्जन हेतु “रेशम नई पहल स्वयं सहायता समूह” के नाम से एक “एस. एच. जी” के रूप में संगठित किया जा चुका है और तुरंत ही उन्हें ₹30000/- का अपना पहला ऑर्डर भी प्राप्त हो चुका है जो कि रामलीला के दौरान अतिथियो को सम्मान स्वरुप भेंट किये जाने वाले मोमेंटो का है जिस हेतु यह नवगठित “एस. एच. जी., रेशम नई पहल स्वयं सहायता समूह आजकल राम, सीता, लक्षमण, हनुमान से सम्बंधित विभिन्न मोमेंटो तैयार करने में व्यस्त है। दीपावली के अवसर पर स्नेहीजनों को दिये जाने वाले उपहार से सम्बन्धित लगभग ₹ 15000/- के ऑर्डर इस “एस. एच. जी.” को प्राप्त हो चुके हैं व नववर्ष पर दिये जाने वाले उपहार से सम्बन्धित लगभग ₹50000/- के आर्डर भी प्राप्त हो चुके हैं।

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“रेशम नई पहल स्वयं सहायता समूह की अध्यक्षा श्रीमती किरन जोशी जिनका शौक ही कला है उनके द्वारा तो अत्यधिक सुंदर व मनमोह लेने वाले रेशम से तैयार उत्पाद जैसे हूबहू माँ नंदा सुनंदा का फोटो फ्रेम, केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति फोटो फ्रेम, पहाड़ी महिला का जीवंत फोटो फ्रेम, उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी हिमालयी मोनाल का उडी फोटो फ्रेम इत्यादि बनाये गये हैं। जिनकी कीमत ₹ 3000/- से ₹7000/- तक है जो कि मूल्य संवर्धन का उत्कृष्ट उदाहरण है।

रेशम विभाग के सहयोग से इस समूह द्वारा इन उत्पादो का ब्रांड नाम ‘उत्तराखंड सिल्क डेकोर, आकर्षक लोगों व पंच लाईन ‘क्राफ्ट ड्रीम्स इन टू रीएलिटी भी तैयार कर लिया गया है, जो भी उत्पाद बेचे जा रहे हैं वे इस ब्रांड नाम, लोगो व पंच लाईन के साथ ही बेचे जा रहे हैं। जो कि उत्तराखंड के रेशम व उसके शुद्ध रेशम के उत्पाद होने की तस्दीक करता है। कच्चा माल रेशम विभाग के सहयोग से ही इस समूह को उपलब्ध करवाया जा रहा है। उपनिदेशक (रेशम) कुमाऊँ मण्डल, हेम चंद्र का कहना है कि इस लोगो व ब्रांड नाम को ट्रेडमार्क के रूप में प्राप्त किया जायेगा। यह तो अभी शुरूवात मात्र है, हमारा उद्देश्य इस समूह को ऐसे वृहद उद्यम के रूप में स्थापित करना है कि यह इस कार्य हेतु पूरे उत्तराखंड मे लीड करे व अनेकों अन्य महिलाओं को भी रोजगार प्रदान करे व अन्य जनपदों में भी इस मॉडल को अपनाकर रेशम व्यवसाय से जुड़े कृषकों को लाभान्चित किया जा सके। साथ ही आने वाले समय में यह कार्य इस रूप में विकसित हो सके कि राज्य में उत्पादित होने वाले रेशम कोये की खपत राज्य के भीतर ही हो जाये, जिससे राज्य के भीतर रेशम कोये की मांग बढ़ने के क्रम में उसका मूल्य भी बढ़ेगा जिसका सीधा लाभ कच्चा माल उत्पादित करने वाले किसानो को प्राप्त होगा। वाकई यदि एक सोच दृढ़ईच्छाशक्ति व दूरदष्टि धारण किये हुए हो तो उसको लक्ष्य तक पहुंचने से कोई नही रोक सकता।

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उपनिदेशक (रेशम) कुमाऊँ मण्डल, हेम चंद्र रेशम व किसान हित के इस महत्त्वपूर्ण कार्य के इस स्तर तक पहुंचने का श्रेय अपने रेशम परिवार मसलन अपने विभाग की टीम को देते हैं जिसमे मुख्य रुप से जनपद नैनीताल की टीम श्रीमती पुष्पा उपाध्याय, श्री रोमिल पाण्डेय, श्री अखिलेश प्रसाद, श्री दीपक सिंह मेर, कु० अनीता टम्टा, कु० हिमानी ढौडियाल, कु० त्रिशा व जनपद ऊधमसिंह नगर की टीम को देते हैं जिन्होंने विभिन्न स्तर पर उनका भरपूर सहयोग किया साथ ही अपने परिवार को देते हैं। जिन्होंने कदम-कदम पर उनका उत्साहवर्धन किया। इस कार्य हेतु श्री दीपक जोशी, रूरल बिजनेस इंक्यूबेटर नैनीताल को धन्यवाद देते हैं कि वे “एस. एच. जी., रेशम नई पहल स्वयं सहायता समूह के माध्यम से हो रहे इस कार्य को सुसंगठित बिजनेस मॉडल के रुप में स्थापित करने में भरपूर मदद कर रहे हैं।

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