हल्द्वानी:समुद्र मंथन से निकला स्वर्ग का पौधा “कल्‍पवृक्ष” देखना हो तो आइए, वन अनुसंधान केंद्र,

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हल्द्वानी:कल्पवृक्ष’ का नाम आपने कहीं न कहीं जरूर सुना होगा लेकिन आपने कल्पवृक्ष कभी देखा नहीं होगा मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान कल्पवृक्ष की उत्पत्ति हुई थी इसे देवलोक का वृक्ष माना जाता है
वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है ऐसे में कल्पवृक्ष को संरक्षित करने का काम उत्तराखंड वन संधान केंद्र लालकुआं कर रहा है।


उत्तराखंड वन संधान केंद्र लालकुआं नर्सरी में कल्पवृक्ष के पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है जिससे कि उत्तराखंड में कल्पवृक्ष के पौधों को तैयार किया जा सके। वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन सिंह बिष्ट ने बताया कि अभी तक कल्पवृक्ष के पेड़ भारत के कुछ राज्यों में कुछ जगहों पर पाए जाते हैं लेकिन उत्तराखंड में कल्पवृक्ष का पेड़ नहीं पाया जाता है इसको देखते हुए संस्थान केंद्र ने कल्पवृक्ष के पौधों को तैयार करने का काम कर रहा है जिससे कि इस विलुप्त रहे पौधों को संरक्षित किया जा सके।

कल्पवृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है यह यूरोप के फ्रांस व इटली , दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के अलावा भारत के कई हिस्सों में में यह पेड़ पाया जाता है भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है।

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पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है समुंद्र मंथन के दौरान कल्पवृक्ष की उत्पत्ति हुई थी इस पेड़ का धार्मिक और औषधि महत्व है इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है।


पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृ‍क्ष की भी उत्पत्ति हुई थी समुद्र मंथन से प्राप्त इस वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना हिमालय के उत्तर में कर दी थी माना जाता है कि धरती के किसी न किसी कोने में आज भी कल्पवृक्ष कहीं न कहीं जरूर होगा। समुद्र मंथन की मिथकीय घटना के बाद जो चौदह रत्नों में श्री, मणि, रम्भा, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज,धेनु, धनुष, शशि, कल्पतरु, धन्वन्तरि, विष और वाज की प्राप्ति हुई हैं।

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वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन बिष्ट ने बताया कि कल्पवृक्ष का धार्मिक और औषधीय महत्त्व है औषध गुणों के कारण भी इस वृक्ष की पूजा की जाती है इसमें 6 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’ होता है गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है

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वन अनुसंधान केंद्र लाल कुआं इस संरक्षित प्रजाति के एक पेड़ को तैयार किया है जो इस समय पतझड़ की स्थिति में है। अनुसंधान केंद्र का मकसद है कि इस विलुप्त हो रही प्रजाति के पेड़ को उत्तराखंड के अन्य हिस्सों में भी लगाई जाए जिससे कि इस पेड़ के महत्व को समझा जा सके।

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