उत्तराखंड: सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा कर रहा 10 साल का बच्चा निकला करोड़पति
कहते हैं किस्मत बदलने में देर नहीं लगती है मां की मौत के बाद भीख मांगकर गुजारा करने वाले एक 10 साल के बच्चे की करोड़ों की संपत्ति का खुलासा हुआ है. ये संपत्ति उसके दादा ने मरने से पहले उसके नाम कर दी थी. इस बच्चे के रिश्तेदार वसीयत लिखे जाने के बाद से ही उसे ढूंढ रहे थे. गांव के रहने वाले मोबिन नाम के लड़के ने उसकी पहचान की जब वह कलियार की सड़कों पर घूम रहा था. उसके बारे में बच्चे के सबसे छोटे दादा को जानकारी मिली जो कि उसे सहारनपुर ले गए. इस बच्चे के नाम एक मुश्तैनी मकान और गांव में पांच बीघा जमीन है।
उस उम्र में दाने दाने को मोहताज बच्चा पिछले कियासाल से सड़कों पर भीख मांगने को लाचार है. पिता को बीमारी ने तो मां को कोरोना महामारी ने छिन लिया. खुले आसमान के नीचे सड़कों पर रहकर गुजारा करने वाले बच्चे को अचानक पता चला कि उसके पास करोड़ों रुपये की संपत्ति है।
मामला उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के एक गांव का बताया जा रहा है. यहां नावेद अपने परिवार के साथ रहता था उसकी पत्नी इमराना उत्तराखंड की रहने वाली थी नावेद की बीमारी से मौत हो गई तो ससुराल पक्ष का उसके प्रति व्यवहार बदल गया इस पर इमराना अपने 6 साल के बेटे (अरमान)काल्पनिक नाम लेकर उत्तराखंड के कलियर में जाकर रहने लगी यहां वह अपने बच्चे के साथ जीवन यापन कर रही थी, लेकिन कोरोना महामारी ने शाहबेज से उसकी मां को भी छिन लिया 10 साल की उम्र में बच्चा दर दर भटकने का मजबूर हो गया उसके आगे पीछे कोई नहीं था. वह भीख मांगकर खाता और खुले आसमान के नीचे सोकर जीवन बीता रहा था. इसबीच ही अरमान के एक रिश्तेदार ने उसे पहचान लिया. बच्चे को भीख मांगता देख शख्स ने उसके परिवार को इसकी जानकारी दी।
लावारिस जिंदगी जी रहा था शाहजेब
तब से अरमान कलियर में लावारिस जिंदगी जी रहा था। चाय व अन्य दुकानों पर काम करने के साथ ही पेट भरने को वह सड़क पर भीख भी मांगने को मजबूर था। उसके सबसे छोटे दादा शाहआलम का परिवार अब उसे सहारनपुर ले गया है।
दादा को उम्मीद थी…मिलेगा पोता, दी थी आधी जायदाद
पहले बहू का घर छोड़कर जाना और उसके बाद बेटे की मौत से दादा मोहम्मद सदमे में थे। हिमाचल में एक स्कूल से रिटायर मोहम्मद की करीब दो साल पहले मौत हो चुकी है। उनके दो बेटों में से नावेद का निधन हो चुका, जिनके बेटे का नाम अरमान है। दूसरे बेटे जावेद का परिवार सहारनपुर में ही रहता है। दादा ने अपनी वसीयत में लिखा था कि जब कभी भी मेरा पोता वापस आए तो उसे आधी जायदाद सौंप दी जाए।
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