(बड़ी खबर)चंबल के कुख्यात डाकू कुसुमा नाइन की मौत :दस्यु सुंदरी कुसुमा 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर मारी थी गोली, लोगों की निकाल लीं थी आंखें….जाने कुसमा की कहानी

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दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन अंत हो गया है किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में कई दिनों से भर्ती डकैत कुसुमा नाइन की शनिवार शाम को इलाज के दौरान मौत हो गई। पुलिस ने पोस्टमार्टम करवाने के बाद इटावा जेल प्रशासन से आए पुलिसकर्मियों को शव दे दिया। इसके बाद जेल प्रशासन कुसुमा के शव को परिवारीजन को सिपुर्द करेंगे, ताकि अंतिम संस्कार हो सके।
जानकारी के मुताबिक इटावा जिला कारागार में करीब 20 वर्ष से सजा काट रही कुसुमा टीबी (क्षय रोग) से ग्रसित थीं। पहले जेल में इलाज चल रहा था। हालात बिगड़ने पर जेल कर्मियों ने इटावा जिला अस्पताल में भर्ती करवाया था, जहां प्राथमिक उपचार करने के बाद डाक्टरों ने कुसुमा को सैफई चिकित्सा विश्वविद्यालय रेफर कर दिया था।

वहां राहत न मिलने पर कुछ दिनों पहले डाक्टरों ने मेडिकल कालेज रेफर किया, जहां इलाज के दौरान कुसुमा की मौत हो गई। डाक्टरों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। रविवार को डाक्टरों के पैनल ने वीडियोग्राफी में शव का पोस्टमार्टम किया।

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जालौन जिले के सिरसाकलार की रहने वाली कुसुमा नाइन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ की खास सहयोगी थी। उनके पूरे गिरोह ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले के दमोह पुलिस थाने की रावतपुरा चौकी पर जून 2004 समर्पण कर दिया था। कुसुमा के गिरोह ने उप्र में करीब 200 से अधिक और मध्य प्रदेश में 35 अपराध किए थे।

मई 1981 में फूलन देवी के बेहमई कांड के बाद वर्ष 1984 में कुसुमा ने इसका बदला लिया। उसने मई अस्ता गांव के 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया। यही नहीं, वर्ष 1996 में इटावा जिले के भरेह इलाके में कुसुमा नाइन ने संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिंदा छोड़ दिया था।
कुसुमा की क्रूरता के कारण डकैत उसे यमुना-चंबल की शेरनी कह कर बुलाने लगे थे। कुसुमा जिन लोगों का अपहरण करती उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी। चूल्हे में लगी जलती हुई लकड़ी को निकाल कर उनके बदन को जलाती थी। जंजीरों से बांध कर उन्हें हंटर से मारा करती थी।

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गांव असेवा निवासी संतोष ने बताया कि डाकू फक्कड़ बाबा उर्फ राम आसरे के भांजे रमाकांत, मोहन और पप्पू ने कामता प्रसाद की हत्या कर दी थी। इस मामले का वह चश्मदीद था। गवाही से भांजों को सजा होने के ड़र से फक्कड़ ने उनको सबक सिखाने का एलान किया था।
15 दिसंबर 1996 की रात 10 बजे के करीब कुसुमा नाइन की अगुवाई में करीब 15 डकैतों ने उसके घर को घेर लिया। डकैत उसको व घर पर सो रहे मित्र राजबहादुर सहित गांव के छह लोगों को बंधक बनाकर गांव से 4 किलोमीटर दूर बीहड़ में ले गए। वहां डकैतों ने उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद धारदार हथियार से उसकी व राजबहादुर की आंखें फोड़ दीं।
शेष चार साथी उन दोनों को किसी तरह गांव लेकर गए। घटना की रिपोर्ट राजबहादुर के भाई महलवान सिंह ने अयाना थाना में दर्ज कराई थी। डकैतों के विरोध में आंखें गंवाने वाले दोनों दोस्तों का कहना है कि डकैतों ने बीहड़ पर जमकर कहर बरपाया है। जिससे आज तक बीहड़ उभर नहीं सका है। अब वह लड्डू बांट रहे है और घी के दीपक जलाएंगे।

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