ओपन हार्ट सर्जरी के बगैर टीएवीआर पद्धति से मैक्स के डॉक्टरों ने हल्द्वानी निवासी का किया सफल वाल्व प्रत्यारोपण

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हल्द्वानी: मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज के डॉक्टरों ने अत्यंत जोखिम वाले 60 वर्षीय मरीज का इलाज करने में सफलता पाई है जिसके दिल से रक्त प्रवाहित करने वाले मुख्य वाल्व यानी महाधमनी बिल्कुल संकीर्ण हो चुकी थी। इस वजह से शरीर में रक्त की आपूर्ति बाधित हो रही थी और मरीज की जान पर बन आई थी।

इसके लिए डॉक्टरों ने हालांकि ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआर) पद्धति ही अपनाई जो आम तौर पर अपनाई जाती है। लेकिन इस मरीज की स्थिति बहुत ही जटिल हो चुकी थी और सबसे बड़ा जोखिम इसलिए भी था कि मरीज की आठ साल पहले ही बायपास हार्ट सर्जरी हो चुकी थी। दोबारा सर्जरी में कई खतरे थे। डॉक्टरों ने यह पद्धति मरीज को बेहोश करके अपनाई और उसे एक दिन में ही डिस्चार्ज कर दिया गया।

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मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज में कार्डियक सर्जरी के निदेशक डॉ वैभव मिश्रा ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया की मरीज हमारे पास शिकायत लेकर आया था कि उसे महीनों से सांस उखड़ने की परेशानी है। इसके बाद जांच में पता चला कि उसका एक हृदय वाल्व एऑर्टिक वाल्व ;महाधमनी संकीर्ण हो चुका था। इस वाल्व को बदलना बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है और इसे सर्जरी के जरिये पूरा किया जाता है। लेकिन इस मरीज की स्थिति के मूल्यांकन से पता चला कि इसमें बहुत बड़ा जोखिम है। हमने टीएवीआर यानी ट्रांस एऑर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट अपनाने का फैसला किया क्योंकि हमें लगा कि मरीज के लिए यह सबसे अच्छी पद्धति हो सकती है। टीएवीआर पद्धति में टांग की फेमोरल आर्टरी के जरिये वाल्व बदला जाता है और इसमें मरीज के सीने में न तो कोई कट लगाना पड़ता है और न ही हार्ट खोलने की जरूरत पड़ती है।

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टीएवीआर की इस नाजुक प्रक्रिया के लिए मैक्स हॉस्पिटल में कैथ लैब एंड कार्डियोलॉजी के वरिष्ठ निदेशक डॉ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई गई और फिर इसे डॉ वैभव मिश्रा की कार्डियक सर्जिकल टीम के साथ जोड़ दिया गया। मरीज के सीने से लेकर टांगो तक संपूर्ण धमनियों की 3डी सीटी स्कैन कराने और एडवांस्ड कंप्यूटराइज्ड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के बाद प्रत्यारोपण के लिए एक विशेष गाइड मैप बनाया गया।

इस बारे में डॉ मनोज कुमार ने बताया हमने मरीज को जनरल एनेस्थीसिया दिए बगैर सिर्फ हल्की बेहोशी में रखते हुए सफलतापूर्वक यह प्रक्रिया पूरी कर ली। मरीज को आईसीयू में एक दिन रखा गया और अगले ही दिन डिस्चार्ज कर दिया गया। इस प्रक्रिया में न तो मरीज के सीने में कोई चीरा लगाने की जरूरत पड़ी और न ही मरीज को खून चढ़ाने की जरूरत पड़ी। मरीज कुछ ही दिन में सामान्य व्यक्ति की तरह नियमित गतिविधियां जारी रखने में सक्षम हो गया और उसे डॉक्टरों की ओर से किसी तरह की कोई सावधानी बरतने भी नहीं कहा गया।

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वाल्व रिप्लेसमेंट की सलाह ऐसे मामलों में दी जाती है जहां वाल्व की रिपेयरिंग किसी भी सूरत में संभव नहीं होती। वाल्व की गड़बड़ी वाली स्थिति में हर कदम पर बड़ी सावधानी और नियोजित तरीके से आगे बढ़ना होता है। मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने इस चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि मरीज का सफल इलाज कर उसकी जान बचाने में सफलता पाई।

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