Uttarakhand:जाने काठगोदाम का इतिहास? कब चली थी यहां पहली ट्रेन? काठगोदाम की रोचक कहानी
प्रगति टीवी डेस्क:आप जानते हैं कि काठगोदाम पहले चौहान पाटा के नाम से जाना जाता था. चलिए आज आपको बताते हैं कि काठगोदाम का इतिहास क्या है और यहां सबसे पहली ट्रेन कब आई थी. काठगोदाम नैनीताल जिले के निचले हिस्से में गौला नदी के तट पर बसा है.
काठगोदाम को पहले चौहान पाटा के नाम से जाना जाता था. 1901 तक यह 300-350 की आबादी वाला एक गाँव हुआ करता था. 1884 में अंग्रेजों ने हल्द्वानी और इसके बाद काठगोदाम तक रेलवे लाइन बिछाई, तभी से इस जगह का व्यावसायिक महत्त्व बहुत ज्यादा बढ़ाऔर यह राष्ट्रीय महत्त्व की जगह बन गया.
टिम्बर किंग दान सिंह मालदार के लकड़ी के गोदाम
उस समय इंडिया के टिम्बर किंग नाम से पहचाने जाने वाले दान सिंह बिष्ट उर्फ़ दान सिंह ‘मालदार’ ने चौहान पाटा में लकड़ी के कई गोदाम बनाये. अब चौघानपाटा काठगोदाम के नाम से जाना जाने लगा. दान सिंह मालदार मूल रूप से वड्डा, पिथौरागढ़ के रहने वाले थे और हल्द्वानी-अल्मोड़ा मार्ग पर बीर भट्टी में भी उनका घर था.बीर भट्टी में एक ज़माने में ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन द्वारा बीयर की भट्टी का सञ्चालन किया जाता था. बाद में इसे दान सिंह मालदार ने खरीद लिया. इस वजह से इस जगह का नाम बीर भट्टी कहा जाने लगा. इसी तर्ज पर काठ के गोदाम होने की वजह से चौघानपाटा काठगोदाम हो गया. इन दोनों संयोगों से दान सिंह मालदार का नाम भी जुड़ गया.
शुरुआती दौर में चलती थी मालगाड़ी
शुरुआती दौर में काठगोदाम से सिर्फ मालगाड़ी ही चला करती थी परंतु बाद में सवारी गाड़ी भी चलने लगी आज काठगोदाम कुमाऊं को रेल मार्ग से देश के कई महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने का माध्यम है. ब्रिटिश शासकों द्वारा कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद काठगोदाम उनके लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया था. इस प्रकार धीरे-धीरे यह क्षेत्र तरक्की करने लगा और वर्तमान में कई आबादी वाले शहरों के साथ-साथ कुमाऊं को शहर से जोड़ने वाली कड़ी बन चुकी है.
जहां से पूरे पहाड़ों के लिए बस और शहरों के लिए ट्रेनें आती जाती हैं. आज काठगोदाम किसी महानगर से कम नहीं है वर्तमान में इस जगह से 10 ट्रेनों का संचालन प्रतिदिन होता है जिनमें से दिल्ली, जम्मू, कानपुर, देहरादून समेत कई बड़े शहरों के लिए ट्रेन चलती है. इसी के साथ काठगोदाम अपनी प्राकृतिक खूबसूरती से देश की सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन का दर्जा भी हासिल कर चुका है.
24 अप्रैल 1884 में आई पहली ट्रेन
काठगोदाम में पहली बार 24 अप्रैल 1884 में ट्रेन लखनऊ से आई थी. काठगोदाम को पहले चौहान पाटा कहा जाता था. 19वीं सदी में काठगोदाम लकड़ियां के व्यापार का मुख्य केंद्र था पहाड़ो से लकड़ियों को गौला नदी के माध्यम से यहां पहुँचाया जाता था. उन लकड़ियों का भंडारण यहां के गोदामों में हुआ करता था. इसी कारण इस क्षेत्र को काठगोदाम नाम कहा जाने लगा. इमारत बनाने के लिए अंग्रेज यहां से पूरे भारत मे लकड़ी भेजते थे. इसी को देखते हुए यहां रेल पथ बनाया गया
भाप इंजन वाली रेलगाड़ी
24 अप्रैल 1884 का दिन जब पहली बार पहाड़ की वादियों ने ट्रेन की सीटी सुनी थी. गौला नदी और जंगल को पार करते हुए भांप इंजन वाली रेलगाड़ी काठगोदाम पहुंची थी. ये उस दौर की बात है जब देश में अंग्रेजों की हुकुमत थी. वहीं क्षेत्र में बाघ, तेंदुओं और हाथी की दहशत हुआ करती थी. ब्रिटिश शासकों द्वारा कुमाऊं में कब्ज़ा कर लिए जाने के बाद यह जगह व्यापार के रूप से भी महत्त्वपूर्ण बन गयी. चन्द शासन काल में काठगोदाम गांव को बाड़ाखोड़ी या बाड़ाखेड़ी के नाम से जाना जाता था.
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